America should not just look at its own interests

Editorial: अमेरिका सिर्फ अपना हित न देखे, यूक्रेन की चिंता भी समझे

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America should not just look at its own interests

America should not just look after its own interests, but also understand Ukraine's concerns: पूरी दुनिया में इसकी चर्चा है कि एक युद्धग्रस्त देश के प्रमुख जब वैश्विक महाशक्ति अमेरिका के दर पर उससे मदद की गुहार लगा रहे थे, तब उस महाशक्ति के संचालक उनसे ऐसा व्यवहार कर रहे थे, जोकि न केवल सामाजिक शिष्टता के विरुद्ध है, अपितु एक देश के प्रमुख का सरेआम अपमान है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच जो वार्तालाप हुआ, वह अब पूरे विश्व के सामने है। ऐसा इतिहास में शायद ही किसी राजनयिक के साथ हुआ, अगर हुआ भी है तो उसका रिकॉर्ड शायद ही होगा। हालांकि अमेरिका में इस समय जिस प्रकार के हालात बने हुए हैं, उनमें इससे कोई संशय नहीं रह जाता है कि किसी अन्य राजनयिक के साथ ऐसा न हो। ट्रंप और जेलेंस्की के बीच  इस तकरार की रूपरेखा बहुत पहले से लिखी जा चुकी थी, क्योंकि अमेरिका अब रूस के प्रति दरियादिल है और उसे अपनी तरफ करने की जुगत लगा रहा है।

ऐसे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को अपने घर बुलाकर उनसे सिर्फ यह चाहते थे कि वे चुपचाप उन सभी शर्तों को मान लें, जोकि उन्होंने रूस के साथ मिलकर तैयार की हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि दो देशों के बीच हो रहे युद्ध में उस देश की शर्तों की अमेरिका को परवाह है, जिसने हमला किया, लेकिन उस देश जोकि हमला झेल रहा है, को उस वार्ता में शामिल करना तक जरूरी नहीं समझा गया। दरअसल, जेलेंस्की के मन में यही कांटा था, जिसका समाधान वे चाहते थे, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी दंभता का प्रदर्शन करते हुए न केवल यूक्रेन के राष्ट्रपति का अपमान किया अपितु उनके देश की जनता को भी नीचा दिखाया।

रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन वर्ष होने को आए हैं और अब हालात ऐसे हैं कि यूक्रेन अपने बूते इस युद्ध को जारी रख पाने में नाकाम है। हालांकि इस युद्ध को यूक्रेन ने नहीं चाहा था, यह युद्ध रूस की चाह था और अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की चुनौती को खत्म करने के लिए उसने यूक्रेन पर हमला किया था। अब वही अमेरिका जिसने रूस के खिलाफ यूक्रेन को मदद दी, यूक्रेन से अपनी उसी मदद की राशि को वापस मांग रहा है। वह चाहता है कि यूक्रेन की सरजमीं में दफन प्राकृतिक संसाधनों का वह उपभोग कर सके और इसके लिए यूक्रेन उसके साथ समझौता करे। हालांकि बदले में यूक्रेन सिर्फ अपनी सुरक्षा की गारंटी मांग रहा है, लेकिन अमेरिका के लिए यह भी बहुत बड़ी चीज लग रही है। क्या एक दंभी राष्ट्रपति की निजी राय ही किसी देश की विदेश नीति को तय कर सकती है।

अमेरिका हमेशा से दुनिया का रखवाला होने का दंभ भरता आया है, तो अब एकाएक उसे यह सब फिजूल लगने लगा। एक कारोबारी व्यक्ति जोकि अब अपने दूसरे कार्यकाल में फिर राष्ट्रप्रमुख बन गया है तो वह ऐसे मामलों में दुकानदारी दिखाएगा। क्या मानवता को बचाने के सरोकार खत्म हो गए। यह भी कितना विचित्र है कि लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका की ओर से चुनाव के प्रचार पर खर्च होने वाली राशि को भी अमेरिका ने बंद कर दिया है। इसके अलावा पैसे बचाने के नाम पर अमेरिका में संघीय नौकरियों से कर्मचारियों को निकाला जा रहा है। यानी यूक्रेन के मामले में क्यों पड़ें, रूस से कारोबार करें और अपने खजाने भरें। इसी प्रकार देश की जनता का क्या हित है, कर्मचारियों की संख्या कम से कम करो और पैसे बचाओ।

गौरतलब है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ घटे घटनाक्रम ने अमेरिका को अकेला कर दिया है। यूरोप के शक्तिशाली देशों ने जिस प्रकार यूक्रेन की मदद के लिए अपनी बांहें बढ़ाई हैं, वह चकित करने वाला है। बीते कुछ समय के दौरान इन देशों ने यूक्रेन से कुछ दूरी बना ली थी, लेकिन अब यूक्रेन को 40 हजार करोड़ रुपये की मदद दी जा रही है। इन नेताओं ने आपातकालीन बैठक में एक जगह आकर जैसा संकल्प लिया है, वह निश्चित रूप से अमेरिका और रूस के लिए संदेश है। उन्होंने कहा है कि 14 करोड़ रूसियों से रक्षा के लिए हम 50 करोड़, 30 करोड़ अमेरिकियों से गुहार क्यों लगाएं।  

उनका कहना है कि ऐसा इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं, अपितु ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमें खुद पर भरोसा नहीं है। मालूम हो, राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्रिटिश पीएम कीर स्टारमर का मजाक उड़ाते हुए उनसे पूछा था कि क्या आप अकेले रूस से टकरा सकते हो और इसका कीर ने कोई जवाब नहीं दिया था। वास्तव में अलग ही तरह की वैश्विक राजनीति का सज रहा मंच है। जिसमें अमेरिका और रूस एक तरफ दिखाई दे रहे हैं, लेकिन यूरोप और चीन जैसे देशों की अपनी ही एकजुटता है। यह भारतीय विदेश नीति के लिए भी सावधान रहने का समय है, क्योंकि बदलते दौर में भारत को सभी की जरूरत रहेगी। हालांकि यूक्रेन के समर्थन में आकर यूरोपीय देशों ने उचित ही किया है, लेकिन सबसे बड़ी जरूरत इसकी है कि इस युद्ध को खत्म कराया जाए और यूक्रेन की इच्छा के मुताबिक उसे स्थायी सुरक्षा मिले। 

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